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प्रसिद्ध त्यौहार स्याल्दे

उत्तराखंड की कला और संस्कृति को जीवंत रखने के लिए हर साल त्यौहार एवं मेला आयोजन का रीति रिवाज रहा है। और ये रीती रिवाज सदियों से चली आ रही है। जिनका अपने आप ऐतिहासिक महत्व रहता है। उन्ही त्यौहारों में से एक है प्रसिद्ध त्यौहार स्याल्दे जो की उत्तराखंड के अल्मोड़ा जनपद में हर वर्ष बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। उत्तराखंड क्लब के आज के इस लेख के माध्यम से हम आपको प्रसिद्ध त्यौहार स्याल्दे के बारें में और स्याल्दे के महत्व और इतिहास के बारें में जानकारी देने वाले है।

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रूपकुंड महोत्सव

उत्तराखंड अपनी परम्परागत रीती रिवाजों से जुड़ा हुवा है। उत्तराखंड की कला और संस्कृति को समझ पाना बहुत मुश्किल है। लोक कथाओं पर आधारित यहाँ के लोग विभिन्न प्रकार के लोकपर्व,त्यौहार एवं मेलों को मानते है। यह मेलें मुख्या रूप से स्थानिया लोगों के द्वारा बनायें हुए होते है जो की उनकी सांस्कृतिक छटा को प्रदर्शित करता है। देवीय शक्तियों के विश्वास पात्र यहाँ के लोंगो द्वारा सदियों से मेलें मनाये जाते है।

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माघ मेला

उत्तराखंड अपनी परम्परागत रीती रिवाजों से जुड़ा हुवा है। लोक कथाओं पर आधारित यहाँ के लोग विभिन्न प्रकार के लोकपर्व,त्यौहार एवं मेलों को मानते है। अपनी संस्कृति को जीवंत रखते हुए उत्तराखंड वासी तरह तरह के मेलों का आयोजन करते है। यह मेलें मुख्या रूप से स्थानिया लोगों के द्वारा बनायें हुए होते है जो की उनकी सांस्कृतिक छटा को प्रदर्शित करता है। उन्हीं प्रमुख मेलें में एक है उत्तराखंड का प्रसिद्ध माघ मेला।

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जिला अल्मोड़ा परिचय एवं महत्वपूर्ण जानकारी

पहाड़ों की खूबसूरत वादियों के बीच में बसा अल्मोड़ा उत्तराखंड राज्य का एक खूबसूरत सा जिला है जी की अपनी संस्कृति एवं रीती रिवाजों के साथ पवित्र स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। इतिहास की अनोखी कहानियों के साथ यह जिला पौराणिक काल से दिव्या आत्मओं का निवास स्थान माना जाता है। आज के इस लेख में हम उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिला के बारें में जानने वाले है।

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प्रसिद्ध उत्तरायनी मेला

राज्य की संस्कृति वहाँ के लोगों और उनके रहन सहन से ज्ञात होती है। लोगों के रहन सहन का हिस्सा स्थनीय खानपान एवं उनके पारम्परिक पोशाक , लोकपर्व, मेलें, महोत्सव, आदि है। उत्तरायणी मेला उत्तराखंड के प्रमुख मेलों में से एक है। जो की उत्तराखंड की संस्कृति, कला, और लोगों के आपसी प्रेम को एक सूत्र में संजोता है। आज के इस लेख के माध्यम से हम उत्तरायणी मेला के बारें में जानकारी साझा करने वाले है। मेला कब और कैसे मनाया जाता है जानने के लिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।

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सिद्धबली जयंती मेला

उत्तराखंड की कला और संस्कृति को समझ पाना बहुत मुश्किल है। कभी प्रकृति के नये रूप के लिए यहाँ त्यौहारों और मेलों का आयोजन किया जाता है तो कभी देवी देवताएँ के आह्वान के लिए यहाँ पर विभिन्न पर्व मनाएं जाने का प्रावधान है। देवीय शक्तियों के विश्वास पात्र यहाँ के लोंगो द्वारा सदियों से मेलें मनाये जाते है। उन्ही मेलों में से एक है सिद्धबली मेला जो की हर हर्ष बड़ी ही भक्ति भावना के साथ हर्ष और उल्लास के साथ मनाई जाती है। उत्तराखंड क्लब के इस लेख के माध्यम से हम आप लोगों के साथ सिद्धबली मेला के बारें जानकारी देने वाले है।

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उत्तराखंड के प्रमुख लोकगीत

उत्तराखंड जो की ग्रंथों में केदारखंड के नाम से भी जानी जाती है। अपनी कला और संस्कृति के बलबूते पर पुरे देश में विख्यात है। यहाँ के लोकगीतों एवं संगीत में आदिकाल की झलक देखने को मिलती है। सामान्यतः लोकगीतों का गायन अपने शब्दों को संगीतमय माध्यम से दूसरे तक पहुँचाना होता है। अब वो किसी व्यक्ति विशेष या भगवान के लिए भी हो सकता है।

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उत्तराखंड के प्रमुख लोक नृत्य

उत्तराखंड में लोकनृत्यों का प्रचलन सैकड़ों वर्षों से रहा है। राजा महाराजाओं के समय से ही नृत्य को महत्व दिया गया है। किसी खास या शुभावसर पर लोकगीतों के साथ लोकनृत्य का होना उत्तराखंड में एक इतिहास बना हुवा है। और उन्ही रीती रिवाजों को जीवंत रखते हुए प्रदेश के निवासियों द्वारा विभिन्न प्रकार के लोकनृत्य किये जाते है आज हम आप लोगों के साथ उत्तराखंड के प्रमुख लोक नृत्य के बारें में जानकारी साझा करने वाले है।

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उत्तराखंड का लोकपर्व घुघुतिया

देवभूमि उत्तराखंड अपने सांस्कृतिक विरासत की अलौकिक कहानियों के बलबूते पर पुरे हिदुस्तान में एक अलग पहचान बनाई बैठी है। अपने पारम्परिक रीती रिवाजों और रश्मों के मनाई जाने के कारण इसकी सांस्कृतिक पूरे विश्व में मशहूर है। यहाँ पर प्रकृति का शुक्रगुजार करने एवं देवी देवताएँ के आह्वान के लिए अनेकों प्रकार के त्यौहार एवं लोकपर्व मनाने का रिवाज सदियों रहा है।

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